बहू का हिसाब (भाग-1) के आगे...
बहू का हिसाब (भाग -2)
घर की जिम्मेदारी आते ही सुलक्षणा ने पाया कि उसकी ससुराल तो उसकी सोच से बिल्कुल अलग है।
उसकी ससुराल जितनी धनाढ्य थी, उतने ही सब careless थे।
वो कमरे में हों या ना हों, कमरे में light, fan, Ac on रहता था।
पानी का खूब wastage किया जाता।
ठंड हो गर्मी हो, ज़रुरी हो कि ना हो geyser on रहता था।
खूब खूब खाने पीने की चीजें आती और बनती, और जब वो बच जाती, तो उन्हें फेंक दिया जाता।
जहाँ एक servant से काम चल सकता है, वहाँ 4 - 4 servant लगे हुए थे।
अलमारी कपड़ों से भरी हुई थी, फिर भी और मंगवाए जाते थे।
इस तरह हर चीज़ की बरबादी देखकर सुलक्षणा को बहुत उलझन होने लगी।
इस विषय में उसने सूरज से बोला, तो उसने कहा- वो भी सब समझता है, पर अब जो जैसा चल रहा है, चलने दो।
तुम कुछ बोलोगी तो बात बढ़ेगी, व्यर्थ का क्लेश होगा। व्यर्थ में घर की शांति भंग करने से क्या लाभ?
कुछ दिन बीत जाने दो, तुम्हारी भी आदत पड़ जाएगी।
सुलक्षणा, सूरज की बात सुनकर चुप हो गई।
कुछ दिन और बीत गए पर सुलक्षणा को अब भी यह सब नागवार लग रहा था।
जब उससे रहा नहीं गया तो उसने अपने सास ससुर से इस विषय पर बात की।
सुलक्षणा की बात सुनकर रमा जी क्रोधित हो गयीं। वो बोलीं, कैसी हो तुम? सब चाहते हैं कि घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो। खूब सारे नौकर - नौकरानी हों घर पर।
और एक तुम हो कि तुम्हें यह सब रास नहीं आ रहा है।
पर इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, हमें ही अपने status के according बहू लाना चाहिए था।
सुलक्षणा के आंसू ढुलक गये। यह देखकर प्रेमप्रकाश जी, जो कि बहुत देर से चुप थे, बोले, रमा जी थोड़ा शांत हो जाइए। बच्ची सहम गई है। उसकी पूरी बात तो सुन लीजिए।
पर रमा जी बहुत ज्यादा क्रोधित थी, बोलीं आप ही सुनिए अपनी लाडली की बातें। आप ही इस नगीने को चुनकर लाए थे, हमारे राजमहल में सजाने के लिए।
यह कहते हुए, वो वहाँ से चलीं गईं। सुलक्षणा बराबर रोती जा रही थी।
प्रेमप्रकाश जी ने बड़े प्यार से सुलक्षणा का सिर सहलाते हुए कहा, आज से तुम अपने हिसाब से घर चलाओ।
पर ध्यान रखना कि किसी को किसी भी तरह की परेशानी ना हो।
और हाँ हमारे घर में बहुत से लोग काम करते हैं, उनकी रोजी रोटी चलती है, इस घर से।
तो तुम अगर उन्हें हटाना चाहती हो, तो यह सोच कर हटना कि किसी की हाय! इस घर को ना लगे।
मेरी प्यारी बच्ची, मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, तुम सब कुछ बहुत अच्छे से manage कर सकती हो।
यह सब सुनकर सुलक्षणा के आंसू थम गये।
प्रेमप्रकाश जी भी अपने कमरे में चले गए।
सुलक्षणा ने ठान लिया कि अब वो सब अच्छे से manage कर के ही रहेगी। लेकिन उसे यह सब अपने ससुर जी की बातों को ध्यान में रख कर करनी थी.......
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