सच्चा सोना
रितेश, बहुत ही सीधा, सच्चा, कर्मठ व्यक्ति था।
हमेशा की तरह वो काम की तलाश में घर से निकला था। उसकी माँ रीता ने उसके खाने के लिए, 8 रोटी, 2 उबले आलू, नमक, मिर्च और प्याज रख दिए थे।
अभी रितेश, गांव से बाहर की ओर निकला ही था, कि उसने देखा एक आदमी उसकी तरफ लहराता हुआ सा चला आ रहा था।
रितेश ने उसे संभालने की कोशिश की, पर तब तक वो उसकी बाहों में बेसुध होकर झूल गया।
रितेश उसे पेड़ की छांव में लिटा कर, अपना खाने का सामान उसके पास रखकर, लोटा लेकर पानी की तलाश में निकल गया।
पास ही कुंआ दिखाई दे गया। रितेश ने लोटे में ठंडा पानी भरा और उस अजनबी के पास आ गया।
उसने अजनबी के मुंह में पानी के छोटे-छोटे छींटें मारे। थोड़ी देर में वो अजनबी अपनी मुर्छित अवस्था से जाग उठा।
क्या हुआ भाई? कौन हो तुम? रितेश ने अजनबी से जानना चाहा...
वो बोला मैं, सुनार रतन सिंह हूँ।
सुनार! और ऐसी अवस्था में?
हाँ? रतन ने धीरे से कहा..
मगर कैसे? रितेश अचरज में पड़ कर बोला...
वो मैं बाद में बताऊंगा, पहले यह बताओ, तुम्हें, मेरे पास इतना सारा सोना देखकर लालच नहीं आया?रतन ने प्रश्न भरी नजरों से देखा...
सोना! यह बोलकर, रितेश ने, रतन को देखा...
रतन की दस ऊंगली में से 6 ऊंगली में सोने की अंगूठियाँ थी। कान में सोने के कुंडल और गले में एक हीरे का हार, 2 सोने के हार और एक मोती का हार भी था। वेशभूषा भी बहुत कीमती थी।
रितेश बोला, जब तुम, मेरी बाहों में आकर मुर्छित हो गये थे। तो मेरा ध्यान, तुम से ज्यादा तुम्हारी अवस्था पर था। मैं तुम्हें पुनः ठीक करने का प्रयास कर रहा था।
वैसे, मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस श्रेणी के हो, कोई गरीब भी होता, तो भी मैं सहायता अवश्य करता।
अगर तुम्हें भूख लगी हो तो मेरे पास आठ रोटी, आलू-प्याज, नमक, मिर्च हैं। हम दोनो लोग मिल बांट कर खा सकते हैं।
पर अगर तुम रूखी सूखी रोटी खा सको तो।
रतन सिंह भूख से तड़प रहा था, उसने खाना देने के लिए, हामी भर दी।
रतन सिंह, एक सफल सुनार था, फिर उसकी यह हालत क्यों हुई, जानने के लिए पढ़ें... सच्चा सोना (भाग - 2) में...
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