Monday, 13 March 2023

Story of Life : मेरी सास ही मेरी सांस

 मेरी सास ही मेरी सांस 


अल्हड़, शोख, चंचल रैना, ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया था। 

वो इतनी हसीन थी कि हर जगह से उसके लिए रिश्ते आ रहे थे। पर उसके मां-पापा उसके लिए सुयोग्य घर-वर की तलाश कर रहे थे।

एक दिन उनका इंतज़ार ख़त्म हुआ, जब एक संस्कारी और पूजा-पाठी परिवार से रिश्ता आया। संयम एक सरकारी कम्पनी में उच्च पद पर आसीन था। 

बहुत धूमधाम से विवाह समारोह संपन्न हुआ, मां-पापा ने अपनी लाडली को, ससुराल से जुड़ने उसे अपना परिवार समझना, जैसे सुसंस्कारों के साथ, खुशी खुशी विदा कर दिया।

अपने मायके से अपने ससुराल आने तक रैना ने अपना मन बना लिया कि आज से यही मेरा परिवार है और यही मेरी दुनिया...

बहुत ही भव्य तरीके से उसका स्वागत हुआ, उसके स्वागत में ढोल नगाड़े, शहनाई आदि बजाए गये। द्वार पर आरती और नजर उतारने के लिए ही बहुत सारी औरतें थाल सजाए खड़ी थीं। मंगलाचार के साथ गृहप्रवेश हुआ। 

गृह प्रवेश के साथ ही बहुत सारी रस्मो-रिवाज प्रारंभ हो गये।

रैना के घर में बहुत सी शादियां हुईं थीं, पर इतनी रस्में तो, किसी की शादी में नहीं देखने को मिली थी कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। 

वैसे उसका एक और कारण भी था, हर रस्म को करने वाले लोग भी बहुत थे। ऐसा लग रहा था कि मानो स्वागत के लिए पूरे शहर को बुला लिया है। 

वो लोग सुबह 10 ही घर आ गए थे और अब शाम के आठ बजने वाले थे। 

तभी सासू मां ने कहा, सब भोजन ग्रहण कर लें जितने लोग, आज रस्में पूरी  नहीं कर पाएं हैं, वो दो दिन बाद मुंह दिखाई की रस्म में आकर रस्म पूरी कर लें।

सभी भोजन ग्रहण करने करने चले गए, और रैना के लिए भी थाली सजकर आ गई। 

और उसके बाद रैना को एक कमरे में आराम करने के लिए भेज दिया गया। 

उस कमरे में बहुत सारे गद्दे बिछे हुए थे। रैना को कुछ सूझ नहीं रहा था कि आखिर यह किस कमरे में उसे आराम करने को कहा गया है, जहां एक नहीं बल्कि बहुत से गद्दे बिछे हुए थे।

आगे पढ़े, मेरी सास ही मेरी सांस (भाग - 2) में...

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