विवाह
चंदना बहुत ही खूबसूरत चंचल सी लड़की थी। अल्हड़ उम्र थी, तो शोख भी कुछ ज्यादा थी। पर उम्र अब शादी-विवाह की भी हो चली थी। तो मां-बाउजी ने रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया था।
चंदना की खूबसूरती के चर्चे जान-पहचान, रिश्तेदार और दोस्त सबमें थे, तो बस इतने रिश्ते आ रहे थे कि पूछो ही मत..
मां बाउजी को समझ ही नहीं आ रहा था कि किसे हां करें? एक से बढ़कर एक रिश्ते थे।
फिर बाउजी ने, अपनी बहन के लाए रिश्ते को हां बोल दिया।
अब बुआ जी रिश्ता लाई थीं तो हर बात सोच समझ कर की जा रही थी, घर की दो-दो बेटियों के भविष्य की बात थी।
जब लड़के वाले आए, तो चंदना को सबने हिदायत दे दी थी, बिल्कुल भी नजर ना उठाए और ना पटर-पटर किसी से बात करे। आखिरकार बुआ जी की इज्जत का सवाल था। लड़के वाले आए तो चंदना ने वैसा ही किया।
लड़के वालो ने देखते ही हां कर दिया। वैसे चंदना सबका कहा ना भी करती, तो भी हां ही होती, क्योंकि वो रूप और संस्कार की अनूठी मिसाल थी।पर सबका कहा करने से, चंदना का चंचल मन, अंदर ही अंदर कहीं घुटकर रह गया। उसको लगा, क्या विवाह का मतलब, लड़की को अपने को खत्म करना होता है?
पर वो अपने मां-बाउजी के कारण चुप थी और वो बुआ जी के कारण..
खैर धूमधाम से विवाह समारोह सम्पन्न हो गया।
शादी तय होने से लेकर शादी होने तक, संजय और चंदना ने एक-दूसरे से एक बात नहीं की थी, क्योंकि सारी बात तो दोनों के घरवालों ने की थी।
सुहाग की सेज पर दो अजनबी बैठे थे। एक दूसरे से सकुचाते शर्माते हुए। चंदना को किसी अजनबी के साथ अकेले बैठना, बहुत अटपटा लग रहा था।
पूरी रात आंखो ही आंखो में निकल गई और सुबह हो गई, पर दोनों ने एक दूसरे से एक शब्द नहीं बोला...
अगले दिन बुआ जी आ गई और चंदना का पग फेरा कराकर ले गई.. जाते-जाते भी चंदना और संजय एक दूसरे को मौन देखते रहे।
बुआ जी ने दोनो की नजरों से भांप लिया कि arrange marriage का रंग है, दोनों के अभी तक सिर्फ नैन ही मिले हैं।
रास्ते में बुआ जी ने पूछा भी, क्यों री लाडो, कैसे लगे जमाई सा?
कैसे?
मुझे नही पता... चंदना ने सोच में डूबे हुए कहा..
फिर बुआ जी ने उसी समय, संजय को फोन घनघना दिया, और जमाई सा, आपके दिल में उतर गई, हमारी लाडो?...
दिल में...
आगे पढ़े विवाह भाग -2 में...
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