एक सच्चाई (भाग-4) के आगे…
एक सच्चाई (भाग-5)
वो आदमी बोल रहा था कि अगर आप को ठकराल जी से मिलना है तो पुरानी हवेली में आ जाना, पर अकेले आना और हाँ, ना तो कोई हथियार लाना, ना ही वर्दी में आना।
जब मैं वहाँ पहुंचा तो वो मुझे देखकर खुश हो गया पर साथ ही वो बहुत डरा और दुखी भी दिख रहा था।
वो मुझे लेकर एक जगह गया।
किसी और जगह?
हाँ… वो कुछ अजीब सी जगह लग रही थी, संकरा-सा रास्ता, दो तरफ़ से दीवार से घिरा हुआ, बस कुछ रोशनी आ रही थी।
उस आदमी ने मुझे आगे अंत तक जाने को कहा, और साथ ही इधर-उधर देखता हुआ, वो आदमी वहाँ से चला गया, जैसे सुनिश्चित कर रहा हो कि उसे किसी ने देखा ना हो।
उस संकरी सी जगह के अंत में, मुझे ठकराल जी ज़मीन पर पड़े हुए दिखे। उनके इर्द-गिर्द चीटियाँ, चूहे आदि घूम रहे थे। साथ ही आसमान में कुछ चील-गिद्ध भी दिख रहे थे।
उनके शरीर में जगह-जगह घाव थे। कुछ चींटी, चूहे और चील-गिद्ध आदि के नोच-खसोट भी दिख रहे थे।
उनकी इतनी दयनीय स्थिति देखकर मेरी आंखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी।
ठकराल जी…
आ गए दारोगा बाबू…
बहुत ही ज्यादा करहाने की आवाज़ में वो बोले... मुझे पता था, यहाँ तक आपके अलावा कोई नहीं आ सकता था। हर किसी को दूसरों की इतनी फिक्र भी तो नहीं होती है कि अपनी कोई भी परवाह नहीं किए दूसरों की मदद को आए।
आप की यह हालत कैसे हो गई? किसने किया यह सब? आप की मदद को कोई आया क्यों नहीं? ज़िंदगी बिता दी आपने दूसरों का करते हुए…
दारोगा बाबू… आप लाख दूसरों के लिए करो, दूसरे भी पलट कर आपके लिए करें, यह कोई आवश्यक नहीं है। बल्कि वो यह मानें भी कि आप ने किया है, यह भी ज़रूरी नहीं है। आपको for granted भी लिया जा सकता है। यही एक सच्चाई है…
बस ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ, दूसरों का अच्छा करते-करते, मेरे कब कठोर दुश्मन बन गए, पता नहीं चला।
जब मुझ पर हमला हुआ तो बहुत लोगों ने देखा, पर मदद को कोई आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि सबको डर था, जो आगे बढ़ेगा, उसका भी यही हश्र होगा।
फिर वो लोग, मुझे अधमरा यहाँ छोड़ गए, इन सबका भोजन बनने।
चलिए ठकराल जी, मैं आपको hospital ले चलूँ…
आप यहाँ आए, बहुत मेहरबानी, पर आप को बहुत देर हो गई… बस इतनी मेहरबानी कर दीजिए कि मेरी हवेली बिकवाकर उससे मेरा अंतिम संस्कार मेरे पूर्वजों के स्थान पर करवा दीजिए और बचे हुए पैसे स्कूल को दान कर दीजिएगा।
इसके साथ ही उन्होंने मेरे सामने दम तोड़ दिया, शायद उन्हें मेरा ही इंतज़ार था।
अभी उनका अंतिम संस्कार अपने पैसों से कर के आ रहा हूँ।
साथ ही उनकी हवेली की बोली भी लगवा कर आ रहा हूं।
हवेली खरीदने के लिए बहुत लोगों की भीड़ थी, उनके दुश्मन भी और उनके द्वारा मदद किए गए लोग भी…
पर जिस आदमी ने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों को समर्पित कर दी, उसके लिए आखिरी पल में कोई नहीं था। एक हाथ नही आगे बढ़ा। किसी ने नहीं सोचा कि जिसने सबके लिए इतना किया, उसका ऐसा अंत ना हो…
यह दुनिया बेहद स्वार्थी है, जब तक कोई करता रहेगा, दूसरे करवाते रहेंगे, पर यह बिना माने कि कोई उनके लिए अनवरत कर रहा है, वो उसे for granted लेंगे और जब उसे आवश्यकता होगी तो दूसरे कुछ करेंगे कि नहीं, यह भी कोई ज़रूरी नहीं है। यह एक सच्चाई है और बहुत ही कटु है।
जो आपके लिए कर रहा है उसे as a respectful person लें, for granted नहीं, वो हाथ छूट गया तो ज़िंदगी बहुत कठीन हो जाएगी।
बेटी, मैंने सोचा है कि ठकराल जी के पैसे स्कूल में नहीं दूंगा, बल्कि उसकी एक ठकराल जी के नाम से FD बनवाऊंगा और जिस किसी को उसकी आवश्यकता होगी, उसे दूंगा, पर शर्त सिर्फ इतनी होगी कि बिना interest के पैसा मिलेगा, जिसे समय अवधि के साथ वापस करना होगा। साथ ही उसे दो लोगों की मदद करनी होगी, और आगे भी दूसरों को यही करना होगा। और जो FD के पैसे लेगा, उसे ठकराल जी की फोटो को अपने घर पर लगानी होगी और अपने बच्चों को ठकराल जी से गुणों को बता कर उनके जैसा बनने को कहें।
पर बाबा, जो ऐसा नहीं करेगा, उसका क्या?
जो ऐसा नहीं करेगा, उससे दुगना पैसा वसूल किया जाएगा और इसमें कोई रियायत नहीं बरती जाएगी।
इससे ठकराल जी का नाम और उनकी अच्छाईयां दुनिया में कायम रहेगी…
बाबा, जो काम ठकराल जी जीवित रहकर नहीं कर पाए, वो आप उनके नाम पर कर देंगे। सही है इससे ठकराल जी की अच्छाईयां और नाम दुनिया में कायम रहेगा।
और जो कटु सत्य है, वो सुखद सच्चाई में बदल जाएगी…
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