खाली हाथ
एक बहुत ही सिद्ध गुरु जी थे। वो शहर-शहर, गांव-गांव जाकर लोगों में ईश्वर भक्ति का प्रचार-प्रसार किया करते थे।
क्योंकि वो बहुत ज्ञानी भी थे, तो उनके पास लोग अपने कई तरह के प्रश्न भी पूछने के लिए आया करते थे। गुरु जी बड़े मनोयोग से उनके पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर दिया करते थे।
एक दिन उनके पास एक दस साल का बच्चा आया, और उसने बहुत ही सहज, किन्तु क्लिष्ट प्रश्न पूछे...
गुरु जी, मनुष्य खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही लौट जाता है, क्यों?
और दूसरा प्रश्न यह है, कि जब खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाना है तो इतना परिश्रम करके धनार्जन क्यों करना है?
प्रश्न तो बहुत सहज थे, पर उसके उत्तर में गूढ़ रहस्य था, अतः गुरु जी ने कहा कि मैं तुम्हें बताता हूं, पर उसके पहले तुम यह समझो कि ईश्वर स्वयं नहीं आते हैं, किन्तु उन्होंने धरती को सुरक्षित और सम्पन्न करने के लिए एक रिश्ता बनाया है और वो रिश्ता है माता-पिता का....
तो तुम्हारा पहला प्रश्न कि हम खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जाते हैं, क्यों?
तो उसका जवाब यह है, कि हमारे जन्म लेने से पहले ही हमारे मां-पापा, हमारे जीवन से जुड़े सभी कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए धनार्जन करते हैं। अत: हमें कुछ भी लेकर आने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ईश्वर ने हमारे जन्म लेने से पहले ही हमें सुरक्षित हाथों में सौंप दिया होता है, सब तरह की व्यवस्था के साथ...
और खाली हाथ इसलिए जाते हैं, क्योंकि ईश्वर के पास पहुंचने के पश्चात् हमें किसी भी तरह की व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके पास हर चीज़ के इतने साधन है कि किसी भी और को कुछ लाने की जरूरत ही नहीं है।
अब बात दूसरी है कि जब खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ ही जाते हैं, तो इतनी मेहनत करके धनार्जन क्यों करना है?
तो उसका जवाब यह है, कि जिस तरह से तुम्हारे मां-पापा ने तुम्हारे जन्म से पहले मेहनत से धनार्जन करके जीवन को सुरक्षित किया था, वैसे ही तुम अपनी संतान के लिए करो।
जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी कुल सुचारू रूप से चल सके, धरती पर भी जीवन सुगमता पूर्वक व्यतीत किया जा सके।
ईश्वर के द्वारा बनाई गई सृष्टि सुचारु रूप से चल सके।
बाकी इंसान आता खाली हाथ है, पर जाता खाली हाथ नहीं है, जो मेहनत और ईमानदारी से कर्म करता है, वो अपने संग अपनों की संतुष्टि और प्रेम लेकर जाता है।
और जो जीवन पर्यन्त कामचोरी करता है, नकारा रहता है, वो अपने संग अपनों की असंतुष्टी और घृणा लेकर जाता है।
और यह बात भी पूर्णत: सत्य है कि जो मनुष्य अपने कर्म पूर्ण ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ करता है, बस वही ईश्वर के श्रीचरणों में स्थान प्राप्त करता है।
इसीलिए, यह सोच कर कि खाली हाथ ही तो जाना है, इतनी मेहनत क्यों करनी... ऐसा बिल्कुल न करना, बल्कि मेहनत और ईमानदारी से कर्म करना, वही मोक्ष का द्वार है, बस इतना ध्यान जरूर रखना चाहिए कि धनार्जन करने में झूठ, छल, कपट, आदि नहीं होना चाहिए, ऐसा कोई कार्य नहीं होना चाहिए, जिससे किसी और की कुछ हानि हो या दिल दुखे...
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