Tuesday 14 May 2019

Story Of Life : मजबूरी का सौदा (भाग-5)


अब तक आपने पढ़ा, कांता बहुत गरीब औरत है, जो अपने बीमार बच्चे को डॉ. समीर को दिखाना चाहती है, पर clinic बन्द होने के कारण दुखी है। क्योंकि Sunday को डॉ. घर में देखते हैं, जो बहुत दूर है, तभी वहाँ सरजू रिक्शेवाला आ जाता है, वो  उन्हें डॉ समीर के पास ले जाता है।  डॉ  समीर की Sunday की फीस हज़ार रूपये हैं , पर कान्ता के पास केवल 700 रूपये हैं।  और इतने रूपये में डॉ समीर, मंगलू को देखने को तैयार नहीं हैं । उसी रात कांता के बड़े बेटे मंगलू का जीवन ख़त्म हो जाता है। 2 साल बीत गए हैं , कांता को एक बड़े घर से काम करने का offer मिलता है। वहां जाकर कांता को पता चलता है, कि वो डॉ. समीर का ही घर है। पर छोटे बेटे की खातिर वो वहां काम करने लगती है. जिस दिन डॉ की बेटी की engagement होती है, उससे 1 दिन पहले से कांता छुट्टी ले लेती है.......  

अब आगे.....    
    

मजबूरी का सौदा (भाग-5) 




समीर से सुलेखा बोली, समीर आप इसे 10 हज़ार दे दीजिये। 

ऐसे कैसे दे दूँ सुलेखा? ये लोगों तो मजबूरी का सौदा करने में लगे हैं, समीर गुस्से से ही भरा हुआ था। 

क्या कर सकते हैं, गहने, कपड़े, सब समान कहाँ रखे हैं, सब ये ही जानती है, मुझे नहीं पता था, इतनी ईमानदार दिखने वाली हमारी मजबूरी का यूं फायदा उठाएगी, सुलेखा दुखी होती हुई बोली।

डॉ. ने 10 हज़ार दे दिये। सरजू बोला भौजी, आप काम निपटा दो, छुटकू की चिंता मत करो, मैं छुटकू को देख लूँगा।

कांता साथ में चली गयी, सब काम ठीक तरह से हो गया। अगले दिन engagement भी अच्छे से हो गयी।

इधर सरजू की देखभाल से छुटकू भी ठीक हो गया। अगले दिन कांता 10 हज़ार लेकर गयी, और सुलेखा से बोली, मैडम ये आपका पैसा। नेहा बिटिया हमारे लिए भी बेटी जैसी ही है।

मेरे छोटे बेटे की तबीयत खराब थी, इसलिए मैं नहीं आ रही थी। जब मेरे बड़े बेटे की तबीयत बहुत खराब थी, तब मैं आयी थी, डॉबाबू को दिखाने। 

डॉ. बाबू से बहुत गिड़गिड़ाई भी थी, पर उन्होंने मेरी मजबूरी नहीं समझी, मात्र 200 रुपए कम होने के कारण उन्होंने उसे देखने से मना कर दिया। और वो इस दुनिया से चला गया।

अब मेरे पास अपना, बस वही छोटा बेटा है, इसलिए उसको छोड़ कर आ नहीं पा रही थी, उस दिन जब आपके पति ने मेरे बेटे को नहीं देखा था, तब भी सरजू ही मेरे साथ था, और जब आप लोग मेरे घर आए थे, तब भी वो आया हुआ था।

वो बहुत क्रोधित था, और आप लोगों को भी मजबूरी का एहसास कराना चाहता था, तभी उसने 10 हज़ार की बात की थी। वो कह रहा था, लोगों से लाखों लूटने वाला 10 हज़ार निकालने में भी 10 बार सोचेगा।

आप अपने पैसे अपने ही पास रखिए, अब तो मैंने आपको सब बता दिया है, कहाँ क्या रखा है, कल से मैं नहीं आऊँगी। हाथ, पाँव सलामत रहें, तो मैं बहुत कमा लूँगी, पर मैं कभी किसी की मजबूरी का सौदा नहीं करूंगी, मजबूरी का सौदा तो आपके पति करते हैं।

10 हज़ार रुपए थमा कर, ये कह कर वो हमेशा के लिए चली गई।

अंदर खड़े डॉ. समीर सब सुन रहे थे, और उन्हें अंदर तक ये एहसास हो रहा था, कि पैसों के लालच ने उन्हें किस हद तक गिरा दिया है, कि वे अब किसी की मजबूरी का सौदा करने से भी पीछे नहीं हटते, आज वो एक डॉ. नहीं  बल्कि मजबूरी के सौदागर बन गए हैं।                    

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.