कौए के दिन
श्राद्ध-पक्ष, पितृपक्ष, या कनागत के दिन आ गए हैं। ये वो दिन हैं, जब लोगों
को कोयल से ज्यादा कौए भाते हैं। वैसे तो ये काला काग और उसकी काएँ-काएँ किसी को फूटी
आँख नहीं सुहाती है। पर जब बात कनागत की हो तो, लोग ढूँढ-ढूँढ
कर कौए को भोजन खिलाते हैं।
पर क्या आपके मन में ये सवाल कभी नहीं आया, कि कौए को ही क्यों खिलाते हैं? तो आज आपको
इस विषय में बताते हैं।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि पक्षियों
में कौआ चंडाल का प्रतीक है, उसे यमराज
जी का दूत माना गया है। अतः ये माना जाता है, ये हमारे
पितरों के पास से आते हैं। जिसके कारण symbolic रूप में, इन्हें खिलाया गया भोजन हमारे पितरों तक पहुँच जाता है। उन्हें तृप्ति
मिल जाती है।
गरुण पुराण में भी व्याख्या की गयी है, कि कौए को भोजन खिलाने से पितरों तक भोजन पहुँच जाता है।
कहा जाता है इंद्र भगवान के पुत्र जयंत ने
सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था, तब भगवान
श्री राम जी, ने उसे वरदान
दिया था, कि तुम्हें(कौए) अर्पित किया गया भोजन पितरों
को मिलेगा।
पर ऐसा नहीं है, कि हिन्दू
धर्म में केवल श्राद्ध पक्ष में कौए को भोजन कराना चाहिए, बल्कि रोज़
ही हमें भोजन को पाँच लोगों को अर्पण करना चाहिए।
पहले ईश्वर को, दूसरा गाय
को, तीसरा कुत्ते को, चौथा कौए
को, और पांचवा चींटियों को। ऐसा इसलिए कहा गया
है, क्योंकि पूरा ब्रह्मांड पाँच तत्वों का बना
है। जिसमें ईश्वर आकाश का, गाय धरती
का, कुत्ता जल का, कौआ वायु
का और चींटी अग्नि का प्रतीक मानी गयी है।
अगर
आप पंडितों की सुनते हैं, तो वे, श्राद्ध में, पंडितों को
भोजन व दान आदि करने की बात करते हैं।
माना जाता है, जब हम इस
संसार में आते हैं, तो हमारे
ऊपर पितृ-ऋण आ जाता है, जिन्हें पितृपक्ष
के दिनों में पूजा-पाठ, दान, तर्पण से उतारा जाता है।
ये तो बात हुई शास्त्र, पुराणों और पंडितों की।
पर जो प्यार, श्रद्धा, और विश्वास हम इन कौओं के प्रति अपने पूर्वजों के जाने के बाद दिखाते हैं, काश वही प्यार, श्रद्धा, और विश्वास माता-पिता के जीवित रहते ही दिखाएँ।
सच जानिए, कौओं को भोजन
कराने से ज्यादा पुण्य माता-पिता की सेवा में है।
उनके इस दुनिया से जाने के बाद नहीं, उनके जीते-जी सेवा करके आप इस ऋण से मुक्त हो सकते हैं। और इससे सरल और
उचित कोई भी विधि नहीं है।
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Article: पितृपक्ष, बस 15 मिनट... ( https://shadesoflife18.blogspot.com/2018/09/article-15.html?m=1 )
Nice 👌
ReplyDeleteThank you for your valuable words
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