अब तक आप ने पढ़ा, अनहद नाद (भाग-1), अनहद नाद (भाग -2) व अनहद नाद (भाग- 3).....
अब आगे........
अनहद नाद (भाग -4)
सिवाय वीरेंद्र की ज़िन्दगी केI”
फिर कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा गईI
मैं उठी और अपने बैग से पानी की बोतल निकालकर अंकल की तरफ़ बढाईI
उन्होंने पानी का एक घूंट पिया और बोतल को अपने सिराहने रख लिया I जैसे ही मैं उनके सामने बैठी फिर मेरा सवाल-
“अंकल घर तो आपका है न?”
मेरा सवाल अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि उन्होंने बीच में रोकते हुए....
कुछ पन्नें मेरे सामने रख दिएI मैं एक-एक पन्ना पढ़ती गयी और पलटती गयीI मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल चुके थेI
वो पन्नें चीख-चीख कर कह रहे थे कि ‘अपने लिए जियो पर अपनों के लिए मत जियोI’
धोखे से वीरेंद्र अंकल ने कौशिक अंकल का सब कुछ अपने नाम कर लिया थाI कौशिक अंकल और आंटी से उनकी छत तक भी छीन ली थी, उन्हें इस संसार में अकेला कर दियाI
मेरे मन में यही आ रहा था कि कोई अपना भी इस हद तक नीचता पर उतर सकता है!
मैं अंकल से कुछ कह पाती इतने में चिड़ियों की चहचहाहट ने हमारा ध्यान भंग किया तो मैंने महसूस किया कि भोर हो चली हैI आसपास फिर से ज़िन्दगी की चहल पहल शुरू हो गयीI
अंकल उठे, अंदर गए........
आगे पढ़े अंतिम भाग, अनहद नाद ( भाग -5)
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