बहू का हिसाब (भाग -3 ) के आगे....
बहू का हिसाब (भाग -4)
रमा जी ने सुलझणा को अपने पास बुलाया और बोलीं, तुमने जो मूर्खतापूर्ण कार्य किया, सबको एक साथ छुट्टी पर भेजने का।
उसका नतीजा भी सोचा है?
और जो लोगों के मन में इच्छित काम की आशा जगा दी, उसका परिणाम भी जानती हो।
इच्छित काम तो ईश्वर भी सबको नहीं दे पाते हैं, कितने ही लोगों को ऐसे काम करने होते हैं, जिसे वो नहीं करना चाहते हैं।
सब सोच समझकर किया है माँ जी।
आप की बहू हूँ, आप का आशीर्वाद और सहयोग है, मेरे साथ।
तो घबराना कैसा? यह कहकर उसने रमा जी की गोद में अपना सिर रख दिया।
सुलक्षणा से नाराज़ होने के बावजूद उन्हें अपनी बहू की इस बात से उसके आत्मविश्वास और संस्कार पर नाज़ हो उठा।
फिर थोड़ा कड़क होकर बोलीं, मुझसे किसी तरह के सहयोग की उम्मीद मत करना।
सुलक्षणा उनके गोद में सिर रखे रही और हल्के से मुस्कुरा दी।
अच्छा उठ अब, सबकी तो छुट्टी कर दी। आगे क्या सोचा है, वो बता दें, रमा जी ने प्यार से सुलक्षणा के गाल पर थपकी मारते हुए कहा।
माँ जी, आप आराम कीजिए, आज का खाना बन चुका है। थोड़ी देर में पापा जी और सूरज जी भी घर आ जाएंगे, तब खाना खाते समय में सबको बता दूंगी कि किस को क्या करना है?
रमा जी, देख रहीं थीं कि सुलक्षणा के चहरे पर आत्मविश्वास और प्रेम की ऐसी झलक थी, जो उसको आज और ज्यादा खूबसूरत बना रही थी।
शाम को खाने के समय, सुलक्षणा ने, प्रेमप्रकाश जी और सूरज को नौकरों से संबंधित सारी बातें बता दी।
सब सुनकर, सूरज के मुंह से निकल गया, हे भगवान! अब घर के सारे काम कौन करेगा?
रमा जी बोलीं, तुम्हारी लाडली सुलक्षणा, अभी हम सब को काम भी सौंपने वाली है।
क्या? अब तो प्रेम प्रकाश जी भी चौंक गए......
आगे पढ़े बहू का हिसाब (भाग -5) में....
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