Dr. Bhimrao Ambedkar (एक गहरी सोच)
डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर, एक ऐसा सशक्त नाम जो भारत के संविधान का निर्माता है, जबकि वो निम्न जाति के थे।
तो फिर यह कैसे संभव हो सका?
उनकी कुशाग्रबुद्धि, धैर्य और गहरी सोच से...
बात उस दौर की है, जब भारत, जात-पात के भंवर में फंसा हुआ था। जब ऊंच-नीच, छूत-अछूत का बोलाबाला था।
उसी समय भीमराव अम्बेडकर भी अपना कठिनाईयों भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे। क्योंकि उनका जन्म महार जाति में हुआ था, जो कि एक नीच जाति के अंतर्गत आती थी।
भीमराव को भी उन वेदनाओं को झेलना पड़ रहा था, जो उस समय निम्न जाति के लोगों को झेलनी पड़ती थी। पर भीमराव, भीड़ से अलग थे।
वो बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के धैर्यवान व्यक्ति थे। उन्होंने देखा कि जो गरीब है, अनपढ़ है, नीच जाति का है, वो कमजोर है, उसकी कोई नहीं सुनता है।
उनका परिवार भी ऐसा ही था। भीमराव ने सोचा, ऐसा क्या किया जाए कि उनकी आवाज़ सशक्त हो जाए, उसे लोग सुनें। उस समय उन्हें ज्ञान से सशक्त कोई और हथियार नहीं दिखा।
बस फिर क्या था, उन्होंने अपना तन, मन और धन, सब विद्यार्जन में लगाना प्रारंभ कर दिया, जिसमें उन्हें बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, पर वो जुटे रहे।
पढ़ाई-लिखाई के साथ धनोपार्जन करते और उसे अपनी पढ़ाई में लगा देते।
उनका ध्येय, सिर्फ अपना विकास नहीं था, वो समस्त निम्न जाति का उद्धार करने के इच्छुक थे। वो जानते थे कि हर निम्न जाति का व्यक्ति, अपनी लड़ाई स्वयं नहीं लड़ पाएगा।
उन दिनों विदेश में जाकर वकालत पढ़कर आना, और भारत में आकर मजबूत पकड़ बनाने का दौर था, अतः भीमराव ने भी विदेश जाकर वकालत की पढ़ाई की।
जब वह लौटे तो उन्होंने देखा, गांधी जी ने अछूतों का नया नाम हरिजन कर दिया है और उनके सहयोग से भारत में अच्छी खासी पैठ बना ली है।
भीमराव ने तो वकालत पढ़ी ही इसलिए थी, कि हर निम्न जाति के व्यक्ति को इस तरह से ऊपर उठाएं कि सदियां बीत जाए, पर उन्हें अपनी जगह से कोई हिला ना पाए। इस के लिए उन्हें गांधी जी जुड़ना हितकर लगा।
उनकी लड़ाई, देश को आजाद कराने की नहीं थी, इसलिए वो स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लेते थे, क्योंकि उनका लक्ष्य तो अलग ही था।
साथ ही स्वतंत्रता सेनानी ना होने के कारण वो अंग्रेजों के विरोधी नहीं थे। अतः भारत के स्वतंत्र होने पर जब संविधान निमार्ण कार्य की शुरुआत हुई, तो अन्य वकील नेताओं के साथ उनका नाम भी शामिल हो गया।
बस भीम राव इसी अवसर की तलाश में थे। उनके वकालत के अच्छे ज्ञान, कुशाग्र बुद्धि और समय अनुकुलता ने उन्हें, अपने सपने साकार करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
उन्होंने संविधान निमार्ण में, ऐसे ऐसे एक्ट और धाराओं का निर्माण किया कि निम्न जाति को समाज में उच्च अधिकार प्राप्त होने लगे।
पर बात को सिर्फ एक्ट और धाराओं तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि reservation का प्रावधान भी बना दिया, जिससे कम क्षमताओं वालों को भी उच्च स्थान प्राप्त हो सके।
उनकी जो सोच थी कि केवल अपने उद्धार से केवल एक निम्न जाति के व्यक्ति का विकास होगा, पर विकास ऐसा होना चाहिए कि सदियां गुजर जाए, पर निम्न को कोई अपनी जगह से हिला ना सके। उसमें वो पूर्णतः सफल सिद्ध हुए।
सदियां गुजर गई पर आज भी reservation यथावत जारी है, दूर दूर तक कहीं कोई नहीं है, जो इसे चुनौती दे सके।
जबकि आज reservation की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अब छूआछूत का बोलबाला पूर्णतः समाप्त हो चुका है, बल्कि देखा जाए तो, यह कहीं ना कहीं देश को खोखला कर के विनाश की ओर ले जा रहा है।
आज बाबा भीमराव अम्बेडकर जीवित होते तो वह अवश्य देश के विकास के लिए, reservation को खत्म कर देते। क्योंकि जहां उनका यह अछूतोद्धार का कार्य पूर्ण हो चुका है वहीं दूसरी ओर उससे भी बड़ा सपना देश विकास का था। भारत के सशक्तिकरण का था, उसे पूर्ण करना अभी बाकी है
क्या, कहीं है कोई, उनके सबसे बड़े सपने को साकार करने वाला?...
देश से reservation को ख़त्म कर, देश को खोखला होने से बचाने वाला या बाबा साहेब को एक और जन्म लेना होगा, देश को सशक्त करने के लिए...
क्योंकि देश को सशक्त वही कर सकते हैं, जिनका सपना, सिर्फ अपने विकास तक सीमित ना हो, जिनकी सोच गहरी हो, जिन्हें सम्पूर्ण जाति, सम्पूर्ण देश को सशक्त करना हो
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
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